पत्थर का समतल टुकड़ा जिसे जमीन पर गाड़ कर चाक घुमाने पर थपा पिंडी से पलौटते हैं, पलोट पलोट कर तब औंधा देते हैं छाया में सुखाते हैं फिर धूप में रखते हैं फिर पानी के पोता से भांजी जाती है होंठ छोड़कर पूरी गगरी ताकि राख मिट्टी में मिल जाये। अब गेवरी (छब्बीस) से रंगते है, सफेद रंग और खरिया पै, गोंदा चका पर रक्खा खौला-लम्बा लम्बा बीच में पोला खौल में मुराउट बनाते हैं, होंठ बनाकर मुराउट भांभां कर रख देते हैं धूप में जब होंठ कड़े हो जाते हैं तब अबा की राख भुरकाते हैं, फिर थपा और पिंडी (पत्थर) को रखकर डौर भांते हैं आधी गगरी बन गई, डौर जब कर्रे हो गये तब थपा और पिड़ी से पूरी गगरी बना ली फिर घंघरों के ऊपर चित्र रख देते हैं,फिर ऊपर का हिस्सा कड़ा करते जाते हैं।
परमावट
पानी में भीगा हुआ कपड़ा जो बर्तनों पर चिकनाई लाने के काम आता है और चकौड़ी में पड़ा रहता है परमावट करना गीले कपड़े से बर्तन को चिकनाना।
परमावर
जो बर्तनों पर चिकनाई लाने के काम आता है और चकौती में पड़ा रहता है।
पाट
दे. चाक।
पिन्डी या पिड़ी
पत्थर की वह चकती जिसे बर्तन गढ़ते समय उनकी गोलाई को ठीक करने के लिये भीतर जमा कर ऊपर से थपा की चोट मारते हैं।
पिरा
बाँस या स्यारू की पतली लकड़ियों से बनी हुई बड़ी टोकन जो कूड़ा करकट इकट्ठा करने और बर्तन ढोने के काम आती है।