निषेधात्मक अव्यय, ’नहीं’ ’न तो’ ’न’ का समानार्थक, लोट् लकार में प्रतिषेधात्मक न होकर, आज्ञा, प्रार्थना या कामना के लिए प्रयुक्त
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विधिलिङ् की क्रिया के साथ प्रयुक्त किये जाने पर कई बार इसका अर्थ होता है- ’ऐसा न हो कि’ इस डर से कि कहीं ऐसा न हो’
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तर्कपूर्ण लेखों में ’न’शब्द ’इत्तिचेत्’ के पश्चात् रक्खा जाता है और इसका अर्थ होता है’ ऐसा नहीं
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जब भिन्न-भिन्न वाक्यों में या एक ही वाक्य के क्रमबद्ध वाक्यखण्डों में निषेधक की पुनरावृत्ति करनी होती है तो केवल ’न’ की आवृत्ति की जा सकती है, अथवा उत, च, अपि, चापि और वा आदि अव्ययों के साथ ’न’को रक्खा जा सकता है, कई बार ’न’ द्वितीय तथा अन्य वाक्यखंडों में न रक्खा जाकर केवल च, वा, अपिवा से स्थानापत्ति करता है।
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किसी उक्ति पर बल देने के लिए बहुधा ’न’ को एक और ’न’ के साथ अथवा किसी अन्य निषेधात्मक अव्यय के साथ जोड़ दिया जाता है।
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कुछ शब्दों में नञ् तत्पुरूष के आरम्भ में ’न’ को ऐसा का ऐसा ही रख लिया जाता है।