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Braj Bhasha Soor-Kosh (Vol-I)

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देवनागरी वर्णमाला का प्रथम अक्षर। कंठ्य वर्ण। मूल व्यंजनों का स्वतंत्र उच्चारण इस अक्षर की सहायता से होता है।

निषेधात्मक उपसर्ग; जैसे-अरूप, असुंदर।

अंक
संज्ञा
[सं.]
चिह्न, छाप।

अंक
संज्ञा
[सं.]
लेख, अक्षर, लिखावट।
अदभुत राम-नाम के अंक १-९०

अंक
संज्ञा
[सं.]
लेखा, लेखन।
जोग जुगुति, जप, तप, तीरथ-ब्रत इनमे एको अक न भाल----१-१२७।

अंक
संज्ञा
[सं.]
गोद, अंकवार, क्रोड़।

अंक
मुहा.
[सं.]
अक भरि लीन्हों, लीन्हो अंक भरी :- हृदय से लगा लिया, गोद में ले लिया। उ.- (क) पुत्र-कबन्ध अंक भरि लीन्हों धरति न इक छिन धीर-१-२९। (ख) धन्य-धन्य बड़भागिनि जसुमति निगमनि सही परी। ऐसे सूरदास के प्रभु कौं लीन्हों अंक भरी--१०-६९। अंक भरि लेत :- छाती से लगा लेते हैं, गोद में लेते हैं। उ.- छिरकत हरद दही हिय हरषत, गिरत अंक भरि लेत उठाई–१०- १९। अंक भरै :- गोद में लेती है, दुलार करती है। उ.- जैसे जननि जठर.अन्तरगत सुत अपराध करे। तौऊ जतन करै अरु पोषे निकसे अंक भरे-१-११७।

अंक
संज्ञा
[सं.]
बार, मतबा।

अंक
संज्ञा
[सं.]
संख्या का चिह्न।

अंकम
संज्ञा
[सं. अंक]
गोद, अंकवार, क्रोड़।
आनंदित ग्वाल-बाल, करत बिनोद ख्याल, भरि-भरि धरि अंकम महर के-१०-३०।


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