Definitional Dictionary of Indian Philosophy (Hindi) (CSTT)
Commission for Scientific and Technical Terminology (CSTT)
Please click here to view the introductory pages of the dictionary
ऋत-सत्य
ऋत और सत्य ये दोनों ही शब्द धर्म के वाचक हैं। इनमें प्रमात्मक ज्ञान का विषय जो धर्म है, वह ऋत कहलाता है तथा अनुष्ठान का विषय जो धर्म है, वह सत्य कहलाता है। तात्पर्यतः आत्मादि तत्त्व ऋत हैं तथा यज्ञादि कर्म सत्य हैं। अर्थात् ज्ञायमान तत्त्व ऋत है और अनुष्ठीयमान तत्त्व सत्य है (अ. भा. पृ. 206)।
Darshana : वल्लभ वेदांत दर्शन
ऋतम्भरा
एक प्रकार की प्रज्ञा का नाम ऋतम्भरा है (योगसूत्र 1/48)। निर्विचारा समापत्ति में जो प्रज्ञा होती है, वह ऋतम्भरा है – यह कई व्याख्याकारों का कहना है। निर्विचार में कुशलता होने पर जो अध्यात्मप्रसाद होता है, उसमें होने वाली प्रज्ञा ऋतम्भरा है – यह भी कोई-कोई कहते हैं। इन दोनों मतों में भिन्न भी एक मत है जो भिक्षु का है। वे कहते हैं कि केवल निर्विचारा नहीं, सभी सबीज योगों (समापत्तियों) में जो प्रज्ञा होती है, वह ऋतम्भरा है। इस प्रज्ञा में विपर्यय अणुमात्रा में भी नहीं रहता, अतः यह वस्तुयाथात्म्य-विषयक ज्ञान है – यह कहा जा सकता है।
Darshana : सांख्य-योग दर्शन
ऋषि
ईश्वर का नामांतर।
ईश्वर स्वतंत्र क्रियाशक्ति संपन्न होने के कारण ऋषि कहलाता है। (ग. का. टी. पृ. 11)। ईश्वर को समस्त क्रिया व विद्या का ईश होने के कारण ऋषि नाम से अभिहित किया गया है। (पा. सू. कौ. भा. पृ. 136, 127)। ऋषि शब्द की ऐसी व्याख्या कौडिन्य ने की है। यद्यपि यह व्याख्या निरुक्त या व्याकरण से सहमत नहीं है फिर भी पाशुपत दर्शन में ऐसा माना गया है।