उच्च वर्ण के वर तथा निम्न वर्ण की कन्या का विवाह। आजकल की अपेक्षा प्राचीन समाज अधिक उदार था। जातिबन्धन इतना जटिल नहीं था। विवाह अनुलोम और प्रतिलोम दोनों प्रकार के होते थे। अनुलोम के विपरीत निम्न वर्ण के पुरुष का उच्च वर्ण की कन्या से विवाह करना प्रतिलोम विवाह कहलाता था। आगे चलकर उत्तरोत्तर समाज में इस प्रकार के विवाह बन्द होते गये। इस प्रकार के सम्बन्ध से उत्पन्न सन्तान की गणना वर्णसंकर (मिश्र वर्ण) में होती थी और समाज में वह नीची दृष्टि से देखा जाता था।
अनुवाकानुक्रमणी
ऋक्संहिता की अनेक अनुक्रमणियों में से एक। यह शौनक की रची हुई है तथा इस पर षड्गुरुशिष्य द्वारा विस्तृत टीका लिखी गयी है।
अनुव्याख्यान
वेदान्तसूत्र पर लिखी गयी आचार्य मध्व की दो प्रमुख रचनाओं में से एक। यह तेरहवीं शताब्दी में रची गयी छन्दोबद्ध रचना है।
अनुव्रजन
शिष्ट अभ्यागतों के वापस जाने के समय कुछ दूर तक उनके पीछे पीछे जाने का शिष्टाचार :
[कोई शिष्ट घर में आता हो तो उसकी अगवानी के लिए आगे चलना चाहिए। वह जब वापस जा रहा हो तो विदाई के लिए उसके पीछे जाना चाहिए।]
अनुशिख
पञ्चविंश ब्राह्मण में उल्लिखित नागयज्ञ के एक पोता (पुरोहित) का नाम।
अनुस्तरणी
प्राचीन हिन्दू शवयात्रा की विविध सामग्रियों के अंतर्गत एक गौ। अनुस्तरणी गौ बूढ़ी, बिना सींग की तथा बुरी आदतों वाली होनी चाहिए। जब यह गाय मृतक के पास लायी जाय तो मृतक के अनुचरों को तीन मुट्ठी धूल अपने कन्धों पर डालनी चाहिए। शवयात्रा में सर्वप्रथम गृह्य अग्नि का पात्र, फिर यज्ञ-अग्नि, फिर जलाने की सामग्री तथा उसके पीछे अनुस्तरणी गौ रहनी चाहिए और ठीक उसके पीछे मृत व्यक्ति विमान पर हो। फिर सम्बन्धियों का दल आयु के क्रम से हो। चिता तैयार हो जाने पर इस गौ को शव के आगे लाते तथा उसको मृतक के सम्बन्धी इस प्रकार घेर लेते थे कि सबसे छोटा पीछे और वय के क्रम दूसरे आगे हों। फिर इस गाय का वध किया जाता या छोड़ दिया जाता था। मृतक ने जीवन में पशु यज्ञ नहीं किया है तो उसे छोड़ना ही उचित होता था। क्रमशः छोड़ने के पूर्व गौ को अग्नि, चिता एवं शव की परिक्रमा कराते थे तथा कुछ मन्त्रों के पाठ के साथ उसे मुक्त कर देते थे।
अनुस्तोत्र सूत्र
ऋग्वेद के मन्त्र को सामगान में परिणत करने की विधि के सम्बन्ध में सामवेद के बहुत से सूत्र ग्रन्थ हैं। अनुस्तोत्र सूत्र उनमें से एक हैं।
अनूचान
जिसने वेद का अनुवचन किया हो। विनयसम्पन्न के अर्थ में इसका प्रयोग होता है। अङ्गों सहित वेदों के ज्ञाता को भी अनूचान कहते हैं :
[प्रेम से पुलकित शरीर वाले अनूचान ऋषियों ने ऐसा कहा।] मनु ने भी कहा है :
ऋषयश्चक्रिरे धर्मं योऽनूचानः स नो महान्।
[ऋषियों ने यह धर्म बनाया कि वेदज्ञ व्यक्ति हमसे श्रेष्ठ है।]
अनृत
इसका शाब्दिक अर्थ है 'मिथ्या' अथवा 'झूठ'। जिस कर्म में असत्य अथवा हिंसा हो उसे भी अनृत कहते हैं। विवाह आदि पाँच कार्यों में झूठ बोलना पाप नहीं माना जाता है :