अर्धगुणसुत्रण की प्रथम पूर्वावस्था में स्थूलपट्ट के ठीक बाद की अवस्था, जिसमें युग्मित गुणसूत्र अनुदैर्घ्यतः अर्धसूत्रों में विभाजित होते दिखाई देते हैं। इस अवस्था में सूत्रकेंद्रों के प्रतिकर्षण से दोनों अर्धसूत्रों के बीच की दूरी बढ़ती जाती है; किऐज़्मा बनने लगते हैं और जीन विनिमय की क्रिया भी होती है।
Diplura
डिप्ल्यूरा
अपंखी कीट, जिनके मुखांग अंतःसृत हनु (endognathus) वाले होते हैं। संयुक्त नेत्र और नेत्रक नहीं होते। उदर के अंत में युग्मित लूम होते हैं। अंतस्थ मध्य तंतुक (filament) नहीं होता। मैलपीगी नलिकाएं अवशेषांग के रुप में होती हैं अथवा नहीं भी होती। उदा.- केम्पोडिया और पेरीजेपिक्स जातियां।
Dipnoi
डिप्नोई
अलवणजलीय शल्कयुक्त मछलियों का समूह, जिनमें वाताशय फुप्फुस का काम करता है और जिनमें अस्थिल कंकाल, बाह्य तथा आंतर नासा-छिद्र और केंद्रीय अस्थिल अक्ष वाले युग्मित पख होते हैं। इन्हें फुप्फुसमीन भी कहते हैं और इनकी केवल तीन जातियां पाई जाती हैः निओसेरेटोइस ( आस्ट्रेलिया) लेपिडोसाइरेन (द. अमेरिका) और प्रोटोप्टेरस (मध्य अफ्रीका)।
Diptera
डिप्टेरा, द्विपंखी गण
एन्डोप्टेरीगोटा विभाग के कीटों का एक बड़ा गण, जिसमें अगले पंख झिल्लीदार तथा पिछले संतोलक के रुप में और मुखांग प्रधानतः चूषण प्रकार के होते हैं; जैसे मच्छर, मक्खी आदि।
Direct pest
प्रत्यक्ष पीड़क
ऐसे पीड़क जो किसी पण्यवस्तु जैसे फल, सब्जी आदि को तात्कालिक एवं प्रत्यक्ष हानि पहुंचाता है, भले ही उसका समष्टि घनत्व कम हो।
Directed mutation
दिष्ट उत्परिवर्तन
गुणसूत्री परिवर्तन जो विशिष्ट जीनों में कृत्रिम रुप से किए जाते हैं।
Disaccharide
डाइसैकेराइड
दो सरल शर्कराओं के संघनन द्वारा बनी शर्करा। दोनों शर्कराओं के अणु समान अथवा भिन्न हो सकते हैं और वे ग्लाइकोसिडीय आबंध से जुड़े रहते हैं। प्राकृतिक रुप में पाए जाने वाले डाइसैकेराइडों के उदाहरण हैं - गन्ना शर्करा (सुक्रोस) और दुग्ध शर्करा (लेक्टोस)।
Discoid
चक्रिकाभ
चक्रिका के आकार का।
Discoidal
चक्रिकाभ
1. विदलन का एक प्रकार जिसमें कोरकचर्म (ब्लास्टोडर्म) एकस्तरीय बिंब के रुप में पीतक (योक) के ऊपर रहता है।
2. अपरा का एक प्रकार जिसमें अंकुर एक या अधिक बिंब-जैसे क्षेत्रों में ही स्थित होते हैं; जैसे मानव में।
Discontinuous variation
असतत विभन्नता
किसी एक जाति में सामान्य जनकों की संतान में भिन्न लक्षणों का पाया जाना। यह घटना गुणसूत्रों की संख्या में परिवर्तन या इसकी रासायनिक अथवा भौतिक संरचना में फेर-बदल होने के कारण होती है।