विष्णु के अवतार मत्स्य का एक सींग होने के कारण उसको एकश्रृंङ्ग कहते हैं। स्वायम्भुव मन्वन्तर में असमय में ही प्रलय हो जाने के कारण मत्स्यरूप धारण करनेवाले विष्णु के सींग में मनु ने नाव बाँधी थी। दे० कालिका पुराण, अ० 32 दे०।
एका अद्वितीया, दुर्गा :
एकागुणार्था त्रैलोक्ये तस्मादेका च सोच्यते।
(समस्त गुणों की तीनों लोकों में वह एक ही मूर्ति है, इसलिए उसे `एका` कहते हैं।)
मार्कण्डेय पुराण (90.7) में कथन है :
एकैवाहं जगत्यत्र द्वितीया का ममापरा।
[इस संसार में मै एक ही हूँ; मुझसे अतिरिक्त और दूसरा कोई नहीं है।]
एकाक्षरोपनिषद्
यह परवर्ती उपनिषद् है। इसमें अद्वैत अक्षर तत्त्व का निरूपण किया गया है।
एकादशी
प्रसिद्ध एवं पवित्र तिथि। यह शुक्ल पक्ष में सूर्यमण्डल में चन्द्रमण्डल की प्रवेश रूप एकादश कला-क्रिया है। इसके पर्याय हैं- (1) हरिवासर, (2) हरिदिन। इस दिन अन्न त्याग, व्रत, उपवास आदि किये जाते हैं। वैष्णवों के लिए इसका विशेष महत्त्व है।
एकादशीव्रत
सभी वैष्णव तथा बहुत से अन्य सम्प्रदाय वाले हिन्दू भी प्रत्येक एकादशी का व्रत करते हैं। इसका माहात्म्य प्रसिद्ध है। वैसे तो सभी मासों की एकादशी पवित्र है, किन्तु कार्तिक शुक्ल एकादशी का विशेष महत्त्व है। इसको प्रबोधनी एकादशी कहते हैं। इसी दिन विष्णु अपनी निद्रा से जागते हैं। दे० 'प्रबोधिनी एकादशी'। इसका पारमार्थिक भाव है अन्नत्याग के समान ही एकादश इन्द्रियों के विषयों-संसारी वस्तुओं का त्यागरूप एकादशी-व्रत।
एकानङ्गापूजा
इस व्रत का अनङ्ग (कामदेव) से सम्बन्ध है। कार्तिक शुक्ल 4, 8, 9 अथवा चतुर्दशी को महिलाएँ किसी फलदार वृक्ष के नीचे एकानङ्गा का पूजन करें। तत्पश्चात् बाज अथवा अन्य किसी पक्षी से कहें कि उनके उत्तम खाद्य तथा नैवेद्य में से वह चोंच भरकर भगवती के पास कुछ थोड़ा-सा नैवेद्य ले जाये। उस दिन पत्नी गति से पूर्व ही भोजन कर ले। तदनन्तर वह पति को भोजन कराये। दे० कृत्यरत्नाकर, 413-414 (ब्रह्मपुराण से उद्धृत)। सम्भवतः एका-अनङ्गा देवी का व्रत पति के आकर्षण अथवा वशीकरण के लिए किया जाता है।
एकान्तरहस्य
वल्लभाचार्य द्वारा रचित एक ग्रन्थ। इसमें सम्पूर्ण प्रपत्तियोग पर आधारित पुष्टिमार्ग के सिद्धान्तों का निरूपण किया गया है।
एकान्तद रामाय्य (एकान्त रामाचार्य)
आलोचक विद्वानों के अनुसार वीरशैव मत के संस्थापक वसव कहे जाते हैं, जो कलचुरी राजा बिज्जल के प्रधान मंत्री थे। बिज्जल 1156 ई० में कल्याण में राज्य करता था। किन्तु डा०फ्लीट का मत है कि अब्लुर के एकान्तद रामाय्य ही वीरशैव मत के प्रवर्तक थे, जिनका चरित्र एक प्राचीन अभिलेख में प्राप्त है। वे पूर्णतया धर्मपरायण थे, जबकि बसव को राजनीतिक एवं सैनिक जीवन में भी लिप्त रहना पड़ता था। 'एकान्तद रामाय्य' का संस्कृत रूप 'एकान्त रामार्य्य' अथवा 'एकान्त रामाचार्य' है।
एकान्न
एकभक्त व्रत, अर्थात् एक बार ही भोजन करने का व्रत। ऐसा व्रत जिसमें एक ही अन्न खाया जाय। स्कन्द पुराण के काशीखण्ड में कथन है :
ऊर्ज्जे यवान्नमश्नीयादेकान्नमथवा पुनः।
[कार्तिक मास में एक अन्न अथवा जौ खाना चाहिए।] कई रसोंवाली भोज्य वस्तुओं को एकमएक मिला देना भी एकान्न है। संन्यासियों के लिए ऐसे स्वादरहित भोजन करने का नियम है। गांधीजी का 'अस्वादव्रत' यही है।
एकान्ती
एक मात्र परमात्मा पर अवलम्बित रहने वाला। इस प्रकार के भक्त का अटल विश्वास होता है कि परमेश्वर की पूजा-भक्ति ही केवल मोक्ष का मार्ग है। अतएव ईश्वर तथा उसके अवतारों की ही भक्ति एवं पूजा होनी चाहिए। इस प्रकार यह सम्प्रदाय एकेश्वरवादी है। भागवत साहित्य बार-बार इस बात पर जोर देता है कि सच्चा विश्वासी 'एकान्ती' ही होगा और वह केवल एक ईश्वर की आराधना करेगा।