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Hindu Dharmakosh (Hindi-Hindi)

एकदन्त
जिसके एक दाँत हो, गणेश। परशुराम के द्वारा इनके उखाड़े गये दाँत की कथा ब्रह्मवैवर्तपुराण में इस प्रकार है-- एक समय एकान्त में बैठे हुए शिव-पार्वती के द्वारपाल गणेशजी थे। उसी समय उनके दर्शन के लिए परशुराम आये। शिवदर्शन के लिए लालायित होने पर भी गणशजी ने उन्हें भीतर नहीं जाने दिया। इस पर गणेशजी के साथ उनका तुमुल युद्ध हुआ। परशुराम के द्वारा फेंके गये परशु से गणेशजी का एक दाँत टूट गया। उस समय से गणेशजी एकदन्त कहलाने लगे।

एकदण्डी
शङ्कराचार्य द्वारा स्थापित दसनामी संन्यासियों में से प्रथम तीन (तीर्थ आश्रम एवं सरस्वती) विशेष सम्मान्य माने जाते हैं। इनमें केवल ब्राह्मण ही सम्मिलित हो सकते हैं। शेष सात वर्गों में अन्य वर्णों के लोग भी आ सकते हैं, किन्तु दण्ड धारण करने के अधिकारी ब्राह्मण ही हैं। इसका दीक्षाव्रत इतना कठिन होता है कि बहुत से लोग दण्ड के बिना ही रहना पसन्द करते हैं। इन्हीं संन्यासियों को 'एकदण्डी' कहते हैं। इसके विरुद्ध श्रीवैष्णव संन्यासी (जिनमें केवल ब्राह्मण ही सम्मिलित होते हैं) त्रिदण्ड धारण करते हैं। दोनों सम्प्रदायों में अन्तर स्पष्ट करने के लिए इन्हें 'एकदण्डी' तथा 'त्रिदण्डी' नामों से पुकारते हैं।

एकदंष्ट्र
दे० 'एकदन्त'।

एकनाथ
मध्ययुगीन भारतीय सन्तों में एकनाथ का नाम बहुत प्रसिद्ध है। महाराष्ट्रीय उच्च भक्तों में नामदेव के पश्चात् दूसरा नाम एकनाथ का ही आता है। इनकी मृत्यु 1608 ई० में हुई। ये वर्ण से ब्राह्मण थे तथा पैठन में रहते थे। इन्होंने जातिप्रथा के विरुद्ध आवाज उठायी तथा अनुपम साहस के कारण कष्ट भी सहा। इनकी प्रसिद्धि भागवतपुराण के मराठी कविता में अनुवाद के कारण हुई। इसके कुछ भाग पंढरपुर के मन्दिर में संकीर्तन के समय गाये जाते हैं। इन्होंने 'हरिपद' नामक छब्बीस अभंगों का एक संग्रह भी रचा। दार्शनिक दृष्टि से ये अद्वैतवादी थे।

एकनाथी भागवत
एकनाथजी द्वारा भागवतपुराण का मराठी भाषा में रचा गया छन्दोबद्ध रूपान्तर। यह अपनी भावपूर्ण अभिव्यक्ति, रहस्य भेदन तथा हृदयग्राहकता के लिए प्रसिद्ध है।

एकपाद
एक प्रकार का व्रत। योग के अनेक आत्मशोधक तथा मन को बाह्य वस्तुओं से हटाकर एकाग्र करने के साधनों में से यह भी एक शारीरिक क्रिया है। इसमें लम्बी अवधि (कई सप्ताह) तक एक पाँव पर खड़े रहने का विधान है।

एकपिङ्ग
यक्षराज कुबेर। उनके पिङ्गल नेत्र की कथा स्कन्दपुराण के काशीखण्ड में कही गयी है।

एकभक्त व्रत
जिसमें एक बार भोजन का विधान हो उसको एकभक्त व्रत कहते हैं। रात्रि में भोजन न करके केवल दिन में भोजन करना भी एकभक्त कहलाता है। स्कन्दपुराण में लिखा है :
दिनार्धसमयेऽतीते भुज्यते नियमेन यत्। एकभक्तमिति प्रोक्तं रात्रौ तन्न कदाचन।।
[दिन का आधा समय व्यतीत हो जाने पर नियम से जो भोजन किया जाय उसे एक भक्त कहा जाता है। वह भोजन रात्रि में पुनः नहीं होता।] इस व्रत का नियम और फल विष्णुधर्मोत्तर में कहा गया है।

एकलिङ्ग
एक ही देवमूर्ति वाला स्थान। यह शिव का पर्याय है। आगम में लिखा है :
पञ्चक्रोशान्तरे यत्र न लिङ्गान्तरमीक्ष्यते। तदेकलिङ्गमाख्यातं तत्र सिद्धरनुत्तमा।।
[पाँच कोश के भीतर जहाँ पर एक ही लिङ्ग हो दूसरा न हो, उसे एकलिङ्ग स्थान कहा गया है। वहाँ तप करने से उत्तम सिद्धि प्राप्त होती है।]

एकलिङ्गजी
राजस्थान का प्रसिद्ध शैव तीर्थस्थान उदयपुर से नाथद्वारा जाते समय मार्ग में हल्दीघाटी और एकलिङ्गजी का मन्दिर पड़ता है। उदयपुर से यह 12 मील है। एकलिङ्गजी की मूर्ति में चारों ओर मुख हैं अर्थात् यह चतुर्मुख लिङ्ग है। एकलिङ्गजी मेवाड़ के महाराणाओं के आराध्य देव हैं। पास में इन्द्रसागर नामक सरोवर है। आस-पास में गणेश, लक्ष्मी, डुटेश्वर धारेश्वर आदि कई देवताओं के मन्दिर हैं। पास में ही वनवासिनी देवी का मन्दिर भी है।


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