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Hindu Dharmakosh (Hindi-Hindi)

स्वर वर्ण का अष्टम अक्षर। कामधेनुतन्त्र में इसका तान्त्रिक माहात्म्य निम्नांकित है :
ॠकारं परमेशानि स्वयं परमकुण्डलम्। पीतविद्युल्लताकारं पञ्चदेवमयं सदा।। चतुर्ज्ञानमय वर्णं पञ्चप्राणयुतं सदा। त्रिशक्तिसंहितं वर्णं प्रणमामि सदा प्रिये।।
वर्णोद्धारतन्त्र में इसके नाम इस प्रकार हैं :
ॠः क्रोधोऽतिथिशो वाणी वामनो गोऽथ शीर्धतिः। ऊर्ध्वमुखी निशानाथः पद्ममाला विनवृधीः।। शशिनी मोचिका श्रेष्ठा दैत्यमाता प्रतिष्ठिता। एकदन्ताह्वयो माता हरिता मिथुनोदया।। कोमलः श्यामला मेधी प्रतिष्ठा पतिरष्टमी। ब्रह्मण्यमिव कीलाले पादको गन्धकर्षिणी।।

लृ
स्वर वर्ण का नवम अक्षर। कामधेनुतन्त्र में इसकी तान्त्रिक महिमा इस प्रकार है :
ॡकारं चञ्चलापाङ्गि कुण्डली परदेवता। अत्र ब्रह्मादयः सर्वे तिष्ठन्ति सततं प्रिये।। ब्रह्मदेवमयं वर्णं चतुर्ज्ञानमयं सदा। पञ्चप्राणयुतं वर्णं तथा गुणत्रयात्मकम्।। बिन्दुत्रयात्मकं वर्णं पीतविद्युल्लता तथा।।
तन्त्रशास्त्र में इसके निम्नलिखित नाम बतलाये गये हैं :
ॡः स्थाणुः श्रीधरः शुद्धो मेधा धूम्रावको वियत्। देवयोनिर्दक्षगण्डो महेशः कौन्तरुद्रकौ।। विश्वेश्वरो दीर्घजिह्वा महेन्‍द्रो लाङ्गलिः परा। चन्द्रिका पार्थिवो धूम्रा द्विदन्तः कामवर्द्धनः।। शुचिस्मिता च नवमी कान्तिरायतकेश्वरः। चित्ताकर्षिणी काशश्च तृतीयकुलसुन्दरी।।

लृ
देवमाता का एक पर्याय (मेदिनीकोश)।

लृ
स्वरवर्ण का दशम अक्षर। कामधेनुतन्त्र में इसका तान्त्रिक माहात्म्य निम्नांकित है :
ॡकारं परमेशानि पूर्णचन्द्र समप्रभम्। पञ्चदेवात्मकं वर्णं पञ्चप्राणात्‍मकं सदा।। गुणत्रयात्मकं वर्णं तथा बिन्दुत्रयात्मकम्। चतुर्वर्गप्रदं देवि स्वयं परम कुण्डली।।
तन्त्रशास्त्र में इसके निम्नलिखित नाम पाये जाते हैं :
ॡकारः कमला हर्षा हृषीकेशो मधुव्रतः। सूक्ष्मा कान्तिर्वामगण्‍डो रुद्रा कामोदरी सुरा।। शान्तिकृत् स्वस्तिका शक्रो मायावी लोलुपो वियत्। कुशमी सुस्थिरो माता नीलपीतो गजाननः।। कामिनी विश्वपा कालो नित्या शुद्धः शुचिः कृति। सूर्यो धैर्योत्कर्षिणी च एकाकी दनुजप्रसूः।।

देवनागरी (मेदिनीकोश); दैत्यसंत्री, दनुजमाता, कामधेनुमाता। शर्व, महादेव। इन एकाक्षर शब्दों का तान्त्रिक क्रियाओं में उपयोग होता है।]

स्वरवर्ण का एकादश अक्षर। कामधेनुतन्त्र में इसका धार्मिक माहात्म्य वर्णित है :
एकारं परमं दिव्यं ब्रह्मविष्णुशिवात्मकम्। रञ्जिनी कुसुमप्रख्यं पञ्चदेवमयं सदा।। पञ्चप्राणात्मकं वर्णं तथा बिन्दुप्रयात्पकम्। चतुर्वर्गप्रदं देवि स्वयं परमकुण्डली।। तन्त्रशास्त्र में एकार के कई नाम दिये हुए हैं:, एकारो वास्तवः शक्तिर्झिण्टी सोष्ठो भगं मरुत्। सूक्ष्मा भूतोर्जकेशी च ज्योत्सना श्रद्धा प्रमर्दनः।। भयं ज्ञानं कृशा धीरा जङ्घा सर्वसमुद्भवः। वह्निर्विष्णुर्भगवती कुण्डली मोहिनी रुरुः।। योषिदाधारशक्तिश्च त्रिकोणा ईशसंज्ञकः। सन्धिरेकादशी भद्रा पद्मनाभः कुलाचलः.।

एककुण्डल
जिसके कान में एक ही कुण्डल है; बलराम। मेदिनीकोश के अनुसार यह कुबेर का भी पर्याय है।

एकचक्र
एक नगरी, इसके पर्याय हैं --हरिगृह, शुम्भपुरी। सूर्य का रथ, असहायचारी। ऋग्वेद (1.164.2) में कथन है :
सप्त युञ्जन्ति रथमेकचक्रमेकोऽश्वो वहति सप्तनामा। त्रिनाभिचक्रमजरमनर्वं यत्रेमा विश्वा भुवनाधि तस्थुः।।
एक राजा। हरिवंश (3.84) में कहा गया है :
एकचक्रो महाबाहुमहाबाहुस्‍तारकश्‍च महाबल:। इस नाम का एक असुर भी था: एकचक्र इति ख्यात आसीद् यस्तु महासुरः। प्रतिविन्ध्य इति ख्यातो बभूव प्रथितः क्षितौ।।
[जो एकचक्र नाम का महान् असुर था, वह 'प्रति विन्ध्य' नाम से पृथ्वी में विख्यात हुआ।]

एकजन्मा
शूद्र; द्विजातिभिन्न; जिसका दूसरा जन्म नहीं हो। जब मनुष्य का दूसरा जन्म (उपनयन संस्कार) होता है तब वह द्विज अर्थात् द्विजन्मा होता है। शूद्र का यह संस्कार नहीं होता।

एकतीर्थी
जिसका समान तीर्थ (गुरू) हो, सतीर्थ्य, सहपाठी, गुरुभाई। धर्मशास्त्र में एकतीर्थी होने के अधिकारों और दायित्वों का वर्णन है।


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