एकाधिदेववाद
वह मत, जिसके अनुसार एक ही देवता के अस्तित्व को स्वीकार किया जाता हो, जैसे वैदिक धर्म आदि में।
Monasticism
मठवाद, भिक्षुधर्म, मठचर्या
आध्यात्मिक विकास के लिए संसार से विरक्त होकर आश्रम या मठ में वास करते हुए चिंतन-मनन, ध्यान, तपस्या या योगाभ्यास का उपदेश करने वाला सिद्धांत अथवा जीवन-पद्धति।
Monergism
ईशैककृतिवाद
ईसाई धर्मशास्त्र में एक मत जिसके अनुसार आध्यात्मिक पुनरूत्थान अकेले दैवी शक्ति से ही संभव है, उसमें मानव-संकल्प का कोई योगदान नहीं होता।
Monism
एकतत्त्ववाद, अद्वैतवाद
1. तत्त्वमीमांसा में वह मत कि इस नानात्व से युक्त विश्व में मूलभूत तत्त्व या सत्ता एक है, हालाँकि उसके स्वरूप को लेकर यह विवाद हो सकता है कि क्या वह भौतिक है, आध्यात्मिक है अथवा दोनों है।
2. ज्ञानमीमांसा में, वह मत कि प्रत्यक्ष के बाहर जो वस्तु होती है वह तथा प्रत्यक्षकर्ता के मन में उसका जो प्रत्यय होता है वह एक है।
Monochronistic Hedonism
तात्कालिक सुखवाद
वह सुखवाद जो तत्क्षण सुख को ही नैतिक आदर्श मानता है और उसे प्राधानता देता है। भारत में चार्वाक एवं पाश्चात्य विचारकों में बेंथम इस मत का प्रतिपादन करते हैं।
Monopsychism
एकात्मवाद
वह मत कि आत्मा एक है और वह शाश्वत है तथा संसार में जो अनेक जीवात्माएँ हैं वे सभी एकेश्वरवाद उसकी अभिव्यक्तियाँ हैं।
Monotheism
एकेश्वरवाद
यह विश्वास कि ईश्वर एक है, अनेक नहीं।
Monte Carlo Fallacy
मॉण्टो-कार्लों-दोष
आगमनात्मक युक्ति में पाया जाने वाला एक दोष, जो तब होता है जब निकट भूत में एक घटना विशेष के आशा से कम बार घटने से यह अनुमान किया जाता है कि निकट भविष्य में उसके घटने की संभाव्यता बढ़ गई है।
Moral A Priori
नैतिक प्रागनुभविक
वे नैतिक संप्रत्यय जो अनुभवपूर्व हों, जैसे शुभ-अशुभ, सत्-असत् आदि। ये नैतिक संप्रत्यय जन्म से ही मनस् में निहित हैं और इनके ज्ञान के लिए किसी प्रकार के इन्द्रिय अनुभव की आवश्यकता नहीं होती।
Moral Argument
नैतिक युक्ति
नैतिकता के आधार पर ईश्वर को प्रमाणित करने वाली युक्ति।
उदाहरण : (i) नैतिक नियम नियामक के बिना नहीं हो सकता, मनुष्य उसका नियामक नहीं हो सकता अतः नियामक के रूप में ईश्वर का अस्तित्व है।
(ii) नैतिक कर्मों का कोई फलदाता होना चाहिये। मनुष्य फलदाता नहीं हो सकता, अतः फलदाता के रूप में ईश्वर का अस्तित्व है।
(iii) नैतिकता की यह तर्कसम्मत मांग है कि सदाचारी अन्त में सुखी हो एवं दुराचारी दुःखी। कोई सीमित शक्ति या जड़ प्रकृति नैतिकता एवं सुख का संयोग नहीं करा सकती अतः ईश्वर का अस्तित्व है।
कांट ईश्वर के अस्तित्व को नैतिकता की एक पूर्वमान्यता के रूप में स्वीकार करते हैं। कांट के अतिरिक्त मार्टिन्यू, प्रो. सोर्ली, जेम्स, सैथ आदि भी इसे स्वीकार करते हैं।