मिथ्याकारण-दोष
जो किसी कार्य का कारण नहीं है उसे कार्य का कारण मान लेने का दोष।
Fallacy Of False Conclusion
मिथ्यानिष्कर्ष-दोष
वह दोष जिसमें युक्ति का निष्कर्ष असत्य होता है।
Fallacy Of False Disjunction
मिथ्यावियोजन-दोष
देखिए `fallacy of false opposition`।
Fallacy Of False Opposition
मिथ्याविरोध-दोष
वह मानने का दोष कि सभी विकल्प परस्पर व्यावर्तक होते हैं। जैसे : यह मान लेना कि यदि वस्तुएँ स्थिर हैं तो उनमें परिवर्तन बिलकुल नहीं हो सकता।
Fallacy Of Figures Of Speech
आलंकारिक भाषा-दोष
यह दोष तब होता है जब एक ही व्याकरणिक रूप रखने वाले अथवा एक ही मूल से व्युत्पन्न शब्दों का एक ही अर्थ समझ लिया जाता है।
उदाहरण : चित्रकार वह है जो चित्र बनाता है;
इसलिए चर्मकार वह है जो चमड़ा बनाता है।
Fallacy Of Four Terms
चतुष्पद-दोष
निरूपाधिक-न्यायवाक्य से संबंधित इस नियम के उल्लंघन से उत्पन्न दोष कि उसमें केवल तीन पद होने चाहिए। यह दोष प्रायः तब उत्पन्न होता है जब हेतु पद साध्य पद अथवा पक्ष पद द्वयर्थक होता है, जिसमें देखने में तीन ही पद लगते हैं पर उन पदों में से किसी पद के दो अर्थों के कारण वास्तव में चार पद बनते हैं। देखिए `fallcy of ambiguous middle`।
Fallacy Of Hysteron Proteron
पूर्वापरक्रम-दोष
प्राकृतिक या तार्किक क्रम में परिवर्तन कर दिए जाने से उत्पन्न दोष।
उदाहरण के लिए : कांट के अनुसार बुद्धि-विकल्पों को प्रत्यक्ष के ऊपर आधारित करना पूर्वापरक्रम-दोष से ग्रस्त होना है क्योंकि जब तक बुद्धि-विकल्पों को संवेदनाओं के ऊपर आरोपित नहीं करेंगे, तब तक कोई प्रत्यक्ष हमारे ज्ञान का विषय बन ही नहीं सकता।
Fallacy Of Ignoratio Elenchi
अर्थान्तर सिद्धि-दोष
यह दोष तब उत्पन्न होता है जब आधारवाक्य एवं निष्कर्ष वाक्य असंबद्ध होते हैं अर्थात् युक्ति का आधारवाक्य उस निष्कर्ष को निगमित नहीं करता, जो अभीष्ट होता है।
Fallacy Of Illicit Importance
अवैध-महत्व-दोष
वह मान बैठने का दोष कि चूंकि एक प्रतिज्ञाप्ति स्वतः सिद्ध है इसलिए वह सहत्वपूर्ण है।
Fallacy Of Illicit Major
अवैध-बृहत पद-दोष
यह दोष तब होता है जब साध्य-पद निष्कर्ष में व्याप्त होता है, पर साध्य-आधारवाक्य में व्याप्त नहीं होता। जैसे : `सभी पक्षी पंख वाले होते हैं, कोई चमगादड़ पक्षी है; अतः कोई चमगादड़ पंख वाला नहीं है।`