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Braj Bhasha Soor-Kosh (Vol-VI)

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नीचाशय
ओछे या क्षुद्र विचार का।
वि.
[सं.]

नीचि
नीचे की ओर।
उ.-समुझि निज अपराध करनी नारि नावति नीचि-३४७५।
क्रि. वि.
[हिं. नीचा]

नीचू
नीचे की ओर।
क्रि. वि.
[हिं. नीचा]

नीचे, नीचैं
नीचे की ओर।
उ.-(क) (कह्यौ) उहाँ अब गयौ न जाइ। बैठि गई सिर नीचैं नाइ-४-५। (ख) सुरपति-कर तब नीचैं आयौ-९-३। (ग) सुनि ऊधौ के बचन नीचे कै तारे-३४४३।
क्रि. वि.
[हिं. नीचा]

नीचे, नीचैं
नीचे-ऊपर- (१) एक पर एक, तले ऊपर। (२) उलट-पलट अस्त-व्यस्त। नीचे गिरना- (१) मान-मर्यादा खोना। (२) पतित होना। (२) कुश्ती में हारना। नीचे डालना - (१) फेंकना। (२) पराजित करना। नीचे लाना- कुश्ती में हराना। उपर ले नीचे तक- (१) सब भागों में। (२) सिर से पैर तक।
मु.

नीचे, नीचौं
घटकर, कम।
क्रि. वि.
[हिं. नीचा]

नीचे, नीचौं
अधीनता में, मातहत।
क्रि. वि.
[हिं. नीचा]

नीच्यो
नीचे की ओर।
उ.-सूर सीस नीच्यो क्यों नावत अब काहे नहिं बोलत-३१२१।
क्रि. वि.
[हिं. नीचा]

नीजन
निर्जन, जनशून्य।
वि.
[सं. निर्जन]

नीजन
वह स्थान जहाँ कोई न हो।
संज्ञा


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