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Braj Bhasha Soor-Kosh (Vol-VI)

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निहाव
लोहे का घन।
संज्ञा
[सं. निघाति]

निहिचय
दृढ़ धारणा।
संज्ञा
[सं. निश्चय]

निहिचिंत
चिंतारहित।
वि.
[सं. निश्चिंत]

निहित
रखा, पड़ा या छिपा हुआ।
वि.
[सं.]

निहितार्थ
वाक्य का अर्थ जो महत्वपूर्ण तो हो, पर जल्दी न खुले।
संज्ञा
[सं.]

निहुँकना
झुकना।
क्रि. अ.
[हिं. नि + झुकना]

निहुड़ना, निहुरना
झुकना।
क्रि. अ.
[हिं. नि + होड़न]

निहुड़ाना, निहुराना
झुकाना नवाना, नीचे या नम्र करना।
क्रि. स.
[हिं. निहुरना]

निहोर
अनुग्रह, कृतज्ञता।
संज्ञा
[हिं. निहोरा]

निहोर
विनती, प्रार्थना।
उ.- (क) प्रभु, मोहिं राखियै इहिं ठौर। केस गहते कलेस पाऊँ, करि दुसासन जोर। करन, भीषम, द्रोन मानत नाहिं कोउ निहोर-१-२५३। (ख) चितै पघुनाथ बदन की ओर। रघुपति सौं अब नेम हमारौ बिधि सौं करति निहोर-९-२३। (ग) लाइ उरहिं, बहाइ रिस जिय, तजहु प्रकृति कठोर। कछुक करुना करि जसोदा करतिं निपट निहोर-१०-३६४। (घ) माखन हेरि देतिं अपनैं कर, कछु कहि बिधि सौं करतिं निहोर-१०-३९८।
संज्ञा
[हिं. निहोरा]


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