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Braj Bhasha Soor-Kosh (Vol-VI)

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निहकरमा, निहकरमी, निहकर्मा, निहकर्मी
जो काम में लिप्त न हो।
वि.
[सं. निष्कर्मा]

निहकलंक
निर्दोष, निष्कलंक।
उ.-लै उछंग उपसंग हुतासन, निहकलंक रघुराई-९-१६२।
वि.
[सं. निष्कलंक]

निहकाम
जिसमें कामना न हो।
वि.
[सं. निष्कामी]

निहकाम
जो काम कामना से न किया जाय।
वि.
[सं. निष्कामी]

निहकामी
जिसमें कामना या आसक्ति न हो।
उ.-प्रभु हैं निरलोभी निहकामी-१००५।
वि.
[सं. निष्कामी]

निहचय
दृढ़ धारणा।
संज्ञा
[सं. निश्चय]

निहचल
स्थिर, अचल।
वि.
[सं. निश्चल]

निहचिंत
निश्चिंत, चिंतारहित, बेफिक्र।
जदुपति कह्यौ घेरि हौं आनौ, तुम जेंवहु निहचिंत भए-४३८।
वि.
[सं. निश्चिंत]

निहचीत
चिंतारहित, चिंता से मुक्त।
उ.-गोबिंद गाढ़े दिन के मीत। गज अरु ब्रज प्रहलाद द्रौपदी, सुमिरत ही निहचीत-१-३१।
वि.
[सं. निश्चिंत]

निहचै
दृढ़ विश्वास।
उ.-निहचै एक असल पै राखे, टरै न कबहूँ टारै-१-१४२।
संज्ञा
[सं. निश्चय]


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