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Braj Bhasha Soor-Kosh (Vol-VI)

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निस्चै
पूर्ण विश्वास, अटल विश्वास।
उ.-जो जो जन निस्चै करि सेवै, हरि निज बिरद सँभारै। सूरदास प्रभु अपने जन कौं, उर तैं नैंकु न टारै-१-२५७।
संज्ञा
[सं. निश्चय]

निस्तंतु
जिसके कोई संतान न हो।
वि.
[सं.]

निस्तंद्र
जिसमें आलस्य न हो।
वि.
[सं.]

निस्तत्व
तत्व या सार-रहित।
वि.
[सं.]

निस्तब्ध
जिसमें गति या हलचल न हो।
वि.
[सं.]

निस्तब्ध
जड़वत्।
वि.
[सं.]

निस्तब्ध
शांत।
वि.
[सं.]

निस्तब्धता
स्तब्ध होने का भाव।
संज्ञा
[सं.]

निस्तब्धता
सन्नाटा, पूर्ण शांति।
संज्ञा
[सं.]

निस्तरंग
जिसमें तरंग न हो, शांत।
वि.
[सं.]


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