यजुर्वेदसंहिता के अनुसार कालका अश्वमेघ यज्ञ का बलिपशु कहा गया है, जिसे अधिकांश उद्धरणों में एक प्रकार का पक्षी समझा जाता है।
(2) अम्बाला (पंजाब) सें 40 मील दूर कालका स्टेशन है। यहीं कालका देवी का मन्दिर है। परम्परा के अनुसार पार्वती के शरीर से कौशिकी देवी के प्रकट हो जाने पर पार्वती का शरीर श्यामवर्ण हो गया, तब वे उस स्थान से आकर कालका में स्थित हुई।
कालक्षेपम्
मराठा भक्तों की 'हरिकथा' नामक एक संस्था है, जिसमें वक्ता गीतों में उपदेश देता है तथा बीच-बीच में 'जय राम कृष्ण हरि' का उच्च स्वर से कीर्तन करता है। इसके साथ वह अनेक श्लोक पढ़ता हुआ उनकी व्याख्या करता है। यही गीत एवं गद्य भाषण की उपदेश प्रणाली पूरे दक्षिण भारत में है। वहाँ गायक को भागवत तथा उसके गीतबद्ध उपदेश को 'कालक्षेपम्' कहते हैं। इसका शाब्दिक अर्थ है 'भगवन्नाम कीर्तन में काल (समय) बिताना।'
कालज्ञानतन्त्र
एक तन्त्र ग्रन्थ। शाक्त साहित्य से सम्बन्धित इस तन्त्र की रचना आठवीं शती में हुई। स्वर्गीय म० म० हरप्रसाद शास्त्री ने इसका विस्तृत विश्लेषण किया है।
कालपी
झाँसी से 92 मील दूर कालपी नगर यमुना के दक्षिण तट पर स्थित है। कालपी में जौंधर नाला के पास वेदव्यास ऋषि का जन्मस्मारक व्यासटीला है। इसके पास ही नृसिंहटीला है। यहाँ के निवासियों का विश्वास है कि प्रलयकाल आने पर जौंधर नाले से मोटी जलधारा निकल कर विश्व को जलमग्न कर देगी। यहीं कालप्रिय (कालपी) नाथ का स्थान है जो तीर्थरूप में प्रसिद्ध है।
कालभैरवाष्टमी
मार्गशीर्ष कृष्ण अष्टमी को कालभैरवाष्टमी कहते हैं। इस तिथि के कालभैरव देवता हैं, जिनका पूजन, दर्शन इस दिन करना चाहिए। दे० व्रतकोश, 316-317; वर्षकृत्यदीपक, 106।
कालमाधव
माधवाचार्य रचित एक धर्मशास्त्र सम्बन्धी ग्रन्थ। इसका दूसरा नाम 'कालनिर्णय' है। इस पर मिश्रमोहन तर्कतिलक की एक टीका भी है जो सं० 1670 में लिखी गयी थी। इसकी कई व्याख्याएँ उपलब्ध हैं। इनमें नारायण भट्ट का कालनिर्णयसंग्रह श्लोकविवरण, मथुरानाथ की कालमाधव चन्द्रिका, राचन्द्राचार्य की दीपिका, लक्ष्मीदेवी की लक्ष्मी (भाष्य) आदि प्रसिद्ध हैं।
कालमुखशाखा
दे० 'कारुणिक सिद्धान्त'।
कालरात्रिव्रत
आश्विन शुक्ल अष्टमी को इस व्रत का अनुष्ठान किया जाता है। लगभग सभी वर्णों के लिए सात दिन, तीन दिन अथवा शरीर की शक्ति के अनुसार केवल एक दिन का उपवास विहित है। पहले श्री गणेश, मातृदेवों स्कन्द तथा शिवजी का पूजन होता है, तदनन्तर एक शैव ब्राह्मण अथवा मग ब्राह्मण या किसी पारसी द्वारा हवनकुण्ड में हवन कराना चाहिए। आठ कन्याओं को भोजन कराने तथा आठ ही ब्राह्मणों को निमन्त्रित करने का विधान है। दे० हेमाद्रि, व्रतखण्ड, 2.326-332 (कालिका पुराण से)।
कालाग्नि
काल का वह स्वरूप, जो प्रलय के समय समस्त सृष्टि का विनाश करता है। यह 'प्रलयाग्नि' भी कहलाता है। महाभारत (1.54.25) में कथन है :
ब्रह्मदण्डं महाघोर कालाग्निसमतेजसम्। नाशयिष्यामि मात्र त्वं भयं कार्षीः कथञ्चन।।
पञ्चमुख रुद्राक्ष का नाम भी कालाग्नि है। स्कन्दपुराण में उल्लेख है :
पञ्चवक्त्रः स्वयं रुद्रः कालाग्निर्नाम नामतः। अगम्यागमनाच्चैव अभक्ष्यस्य च भक्षणात्।। मुच्यते सर्वपापेभ्यः पञ्चवक्त्रस्य धारणात्।
कालाग्निरुद्र
जगत् का संहार करनेवाले कालाग्नि के अधिष्ठातृदेव। देवीपुराण में कालाग्निरुद्र का वर्णन पाया जाता है :