1. परिनिष्पन्नता : अन्तिम होने की अवस्था।
2. सप्रयोजनता : किसी घटना या कर्म के किसी प्रयोजन की पूर्ति के लिए होने की विशेषता।
Final Judgement
कल्पान्त-निर्णय
ईसाइयों में प्रचलित एक विश्वास के अनुसार, सृष्टि के अन्त में सभी जीवित और मृतक मनुष्यों के कर्मों पर ईश्वर के द्वारा दिया जाने वाला निर्णय।
Final Perseverance
अन्तिम स्थायित्व (कृपाजनित)
जॉन कैल्विन के अनुयायियों की एक मान्यता के अनुसार, ईसा में आस्था के पश्चात् नवजीवन-प्राप्त पापात्माओं को ईश्वरीय कृपा से मिलने वाला अमरत्व।
Finite Mode
परिमित पर्याय
स्पिनोज़ा ने परम तत्त्व को `द्रव्य` बताया है और विश्व की समस्त वस्तुओं और जीवात्माओं को उसके अनन्त गुणों में विचार और विस्तार के सीमित विकार माना है। वे सीमित विकार ही `परिमित पर्याय` हैं।
Finitism
1. परिमिततावाद, परिच्छिन्नतावाद : वह मत कि यद्यपि ईश्वर मंगलमय और नैतिक दृष्टि से पूर्णतः शुभ है, फिर भी उसकी शक्ति उन परिस्थितियों के कारण सीमित हो जाति है जिनको बनाने में उसका कोई हाथ नहीं होता।
2. सान्त दृष्टांतवाद, नियतोदाहरणवाद : वह मत कि केवल वे वाक्य ही सार्थक हैं जिनमें समाविष्ट उदाहरणों की संख्या परिमित होती है और इसलिए जिनका सत्यापन किया जा सकता है।
First Cause Argument
आदि कारण युक्ति
ईश्वर के अस्तित्त्व को सिद्ध करने के लिए दी गई युक्ति जो विश्व को कारण-कार्य श्रृंखला में आबद्ध कर आदि कारण के अस्तित्त्व के रूप में ईश्वर को अनिवार्य मानती है।
First Heaven
आद्य लोक
अरस्तू की ब्रह्माण्ड-मीमांसा के अनुसार सर्वोपरि बाह्य मण्डल जिसमें स्थिर अथवा अचल नक्षत्र निवास करते हैं।
First-Person Statement
उत्तमपुरुष-कथन
किसी व्यक्ति द्वारा स्वयं अपने विषय में किया गया कथन। जैसे : `मेरे पेट में दर्द हो रहा है।`
First Philosophy
आद्य दर्शन
अरस्तू के अनुसार, (1) आदि कारणों तथा सत्ता के तात्विक गुणों का विवेचन करने वाला शास्त्र, तथा (2) विशेषतः ईश्वर मीमांसा।
First Principles
प्राथमिक सिद्धांत, आदि तत्त्व, प्रथम (आधारभूत) सिद्धांत
1. वे प्राथमिक तत्त्व जिनके द्वारा सम्पूर्ण सृष्टि की रचना मानी जाती है, यथा जल, वायु, अग्नि आदि।
2. वे कथन, नियम, तर्क, विधान, विश्वास अथवा सिद्धांत जो मौलिक आधारभूत, निर्विवाद और स्वतः सिद्ध होते हैं; जो किसी निकाय की व्याख्या के आधार होते हैं तथा जिन पर अपनी संसक्तता और संगति के लिए प्रत्येक निकाय निर्भर करते हैं; जिनकी व्याख्या करने की कोई आवश्यकता नहीं होती।
3. वे मौलिक और परम सत्य, जिन्हें नैतिक कार्य की आधारशिला माना जाता है।