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Paribhasha Kosh (Arthmiti, Janankiki, Ganitiya Arthshastra Aur Aarthik Sankhyiki) (English-Hindi)
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Urban agglomeration
नगरीय संकुलन
नगरीय संकुलन मानक नगर क्षेत्रों से सटा हुआ ऐसा नगरीकृत इलाका या बस्ती होती है जिसकी जनसंख्या 2500 या उससे अधिक हो। अथवा यदि 2500 से कम आबादी हो तो इसमें कम से कम 100 या उससे अधिक मकान या आवास हों।

Urbanisation
नगरीकरण
भारी संख्या में लोगों का ग्रामीण क्षेत्रों से बाहर जाकर शहरी क्षेत्रों में बसना।
इस घटना या प्रक्रिया को वर्तमान युग की एक प्रमुख जनांकिकीय प्रवृत्ति माना जाता है जिसके चिन्ह हमें विश्व के सभी देशों तथा क्षेत्रों में दिखाई देते हैं।
नगरों की वृद्धि और महानगरों का निर्माण इसी प्रवृत्ति के द्योतक हैं।

Urban-rural classification
नगर-ग्राम वर्गीकरण
समस्त विश्व में भूमि क्षेत्र को दो वर्गों में बाँटा गया है:— (1) नगर क्षेत्र तथा (2) ग्राम क्षेत्र।
इस वर्गीकरण का मूलाधार यह है कि किसी क्षेत्र की अधिकांश जनसंख्या खेती में लगी है या इससे बाहर अन्य धंधों में।
नगर ग्राम वर्गीकरण के विश्व के अलग-अलग भागों में कुछ दूसरे मानदंड भी हैं।
भारत में स्थानीय स्वायत्तशासी संस्थाओं के अन्तर्गत सम्मिलित क्षेत्र नगर-क्षेत्र कहलाते हैं। शेष क्षेत्रों के वर्गीकरण करते समय इन बातों का ध्यान रखा जाता है: (1) जनसंख्या-परिमाण, (2) जनसंख्या का घनत्व तथा (3) गैर कृषि के कामों में लगे व्यक्तियों का अनुपात।
1961 और बाद में 1971 की जनगणना के समय भारत में जिस वर्गीकरण को मान्यता दी गई है उसके अनुसार नगर क्षेत्र के अन्तर्गत निम्नलिखित क्षेत्र आते है: (1) नगर निगमों, नगर पालिकाओं, छावनी बोर्डों, टाउन एरिया या इसी प्रकार की अन्य स्वायत्तशासी संस्थाओं के अधीन क्षेत्र, (2)1961 में जिनकी जनसंख्या 5,000 थी और जिनकी कम से कम 1/5 प्रतिशत जनसंख्या गैर-कृषि धंधों में लगी थी। (3) कम से कम 400 व्यक्ति प्रति वर्ग कि∘ मी∘ (1000 व्यक्ति प्रति वर्ग मील) के क्षेत्र तथा (4) अन्य क्षेत्र जिनमें चाहे उक्त लक्षण न हों किन्तु जो नगर क्षेत्र घोषित कर दिए गए हों।

Utility function
उपयोगिता फलन
उपभोक्ता को विभिन्न वस्तुओं की अलग अलग मात्राओं से होने वाली उपयोगिता को दर्शाने वाला फलन ।
गणितीय पदों में इसे दो वस्तुओं के संदर्भ में इस प्रकार प्रगट किया जाता है:— U=f(q_1,q_2 ) यहाँ पर q_1 और q_2 किन्हीं दो वस्तुओं के उपयोग की मात्रा के द्योतक हैं।
उपर्युक्त फलन में यह पूर्वधारणा की गई है कि यह फलन सतत है। इसके प्रथम कोटि तथा द्वितीय कोटि के आंशिक अवकलन निकाले जा सकते हैं। यह फलन अद्वितीय नहीं है तथा इस फलन को किसी निर्दिष्ट समय के लिए ही उपभोक्ता के व्यवहार का द्योतिक माना जा सकता है। भिन्न-भिन्न समयों पर उसकी तुष्टि का स्तर तथा व्यवहार अलग प्रकार का होगा। इस फलन में उपभोक्ता के व्यय को एक काल से दूसरे काल में अंतरित करने की कोई संभावना नहीं रहती।

Utility index
उपयोगिता सूचकांक
एक दिया हुआ उपयोगिता फलन U (x_1,x_2 ) जो बजट-तल के प्रत्येक बिन्दु पर परिभाषित होता है, उपयोगिता सूचकांक कहलाता है।
यह सूचकांक फलन निम्न स्थिति में एकदिश रूपांतर होता है:— U(x_1,x_2 ) U(y_1,y_2 ) शर्त यह है कि उपभोक्ता दूसरे वस्तु संयोग (x_2,y_2 ) को पहले वस्तु-संयोग (x_1,y_2 ) की तुलना में वरीयता दे।
यह सूचकांक तभी बनाया जा सकता है जब उपभोक्ता का व्यवहार निम्न पाँच स्वयंसिद्धियों के अनुसार हो:— (1) पूर्ण क्रमीकरण स्वयंसिद्धि (Complete ordering axiom) (2) सातत्य की स्वयंसिद्धि (Continuity axiom) (3) स्वातंत्रय की स्वयंसिद्धि (Independence axiom) (4) असमान प्रायिकता की स्वयंसिद्धि (Unequal probability axiom) (5) सम्मिश्रता की स्वयंसिद्धि (Axiom of complexity)

Value added
मान योजित/मूल्य योजन
सांख्यिकी में इस संकल्पना का यह तात्पर्य होता है कि किसी दिए हुए क्षेत्रक द्वारा एक दूसरे क्षेत्रक के उत्पादन के साधनों से प्राप्त वस्तुओं द्वारा कितना मूल्य जोड़ा गया है या बढ़ाया गया है।
इसे हम सूत्र रूप में xoi+mi के योग या जोड़ के रूप में व्यक्त करते हैं।
इस संकल्पना के अनुसार प्रत्येक क्षेत्रक का प्रवाह दूसरे क्षेत्रकों को अंतिम रुप से दी जाने वाली वस्तुओं तथा उनसे प्राप्त होने वाली वस्तुओं तथा उनके मान योजन के बराबर होता है।

Variable
चर
ऐसा अज्ञात या बुनियादी संकेत जिसका विश्लेषण में कोई भी मान हो सकता है या जो ग्राह्य मानों के एक सेट का रूप धारण कर सकता है।
चर संतत भी हो सकता है और असंतत भी।
संतत चर निर्दिष्ट परास के भीतर ऐसा कोई भी मान धारण का सकता है कि दो क्रमिक मानों का अंतर यथासंभव अत्यल्प हो।
अंसतत चर का मान निर्दिष्ट परिसर के अन्दर निश्चित मान तक घट-बढ़ सकता है।
ऐसे संख्यात्मक अभिलक्षण जिनका परिमाण भिन्न-भिन्न व्यक्तियों के लिए भिन्न होता है चर कहलाते हैं। अर्थात् चर वे गुण या अभिलक्षण हैं जो परिणाम में अक्षरों को प्रदर्शित करते है और एक विस्तार के अन्तर्गत परिवर्तित या विचलित होते है।

Variance
प्रसरण
बंटन से संबद्ध एक मान।
इसे var x या σ^2 द्वारा व्यक्त किया जाता है।
यह मानक विचलन के वर्ग के बराबर होता है अथवा माध्य से वर्गित विचलन मानों के प्रत्याशित मान के बराबर होता है।
तुल∘ दे∘ standard deviation

Variate transformation
विचर रूपांतरण
कई बार एक विचर को किसी गणितीय समीकरण से जोड़कर दूसरे विचर के रूप में बदल दिया जाता है।
यह इस प्रयोजन से किया जाता है कि किसी विचर के बंटन के फलन को पूर्णतः अथवा निकटतम रूप से किसी ऐसे दूसरे विचर के रूप और गुणों के बंटन के रूप में दिखाना होता है जिसका फलन हमें ज्ञात होता है।
इस तरह यह अज्ञात विचर को ज्ञात फलन के रूप में दिखाने की एक गणितीय विधि है।

Variation between column means
स्तंभ माध्यों के बीच विचरण
दो स्तंभों में दिए गए आँकड़ों के औसत या माध्यों का विचरण ज्ञात करने की विधि।
इसके लिए प्रत्येक स्तंभ के माध्य x̅_(1,) x̅_2…..... और उसके सभी मानों के समांतर माध्य अर्थात सकल माध्य (x̅) के अन्तर को निकाल कर उनका वर्ग लिया जाता है और फिर प्रत्येक स्तंभ में दी गई संख्या से गुणा करके उनका जोड़ निकाला जाता है। इस प्रकार स्तंभ के माध्यों का विचरण ज्ञात किया जाता है।
इसका सूत्र इस प्रकार है:— ∑_1^ka▒〖〖[Ne (x̅e-x̅)〗^2]〗


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