पूँजी संचयन से संबंधित स्थायी संवृद्धि का सिद्धांत।
इस सिद्धांत का सर्वप्रथम प्रतिपादन डार्फमैन (Dorfmen) सेमुअलसन (Samuelson) और सोलो (Solow) ने 'रैखिक प्रोग्रमन और आर्थिक विश्लेषण' के अन्तर्गत किया है। इसका वान न्यूमैन (Von Neumann) द्वारा अधिकतम संवृद्धि के संदर्भ में और आगे विकास किया गया है।
इस प्रमेय के अनुसार यदि हम दीर्घावधिक संवृद्धि के लिए आयोजन कर रहे हों तब भले ही जहाँ कहीं से भी प्रारंभ करे और जहाँ तक मर्जी जाना चाहें, हमें इस प्रक्रम के दौरान, ऐसी मध्यवर्ती अवस्थाओं में से गुजरना पड़ेगा जो एक ऐसी टर्नपाइक (नाका या प्रतिवर्त बिन्दु) की तरह होंगी जो सामान्तया लघुमार्गों या सड़कों द्वारा घिरा होगा।
इस मार्ग पर हमें दो, बिन्दुओं के बीच तीव्रगति वाले पथ का अनुसरण करना होगा। यदि ये दोनों बिन्दु एक दूसरे के काफ़ी नजदीक हों चाहे ये नाके या प्रतिवर्त बिंदु से कितनी दूर क्यों न हो तब हमें इन दोनों के बीच वह रास्ता चुनना पड़ेगा जो चाहे प्रतिवर्त बिदु को न भी छूता हो किन्तु तीव्रतम गति से पूरा किया जा सकता हो। भले यह रास्ता लंबा हो परंतु अस्थायी रूप से यहीं इष्टतम संवृद्धि का मार्ग होगा।
Two stage least square estimation
द्विस्तरीय न्यूनतम वर्ग आकलन
द्विस्तरीय न्यूनतम वर्ग आकलन विधि सीमित सूचना पद्धति का एक विकल्प है। इसकी सहायता से दो या अधिक संयुक्त आश्रित चरों वाले अधिचिह्नित समीकरणों का आकलन किया जाता है। इसके अन्तर्गत निम्नलिखित क्रियाएं की जाती हैं:—
(क) आजकल समींकरण में संयुक्त रूप से आश्रित चरों में से पहले हम एक का वरण करते हैं जिसे दुसरे स्तर पर आश्रित चर माना जाता है
(ख) लघुकृत समीकरण के न्युनतम वर्ग की गणना की जाती है, जिसमें पहले चुने गए चार को छोड़कर शेष संयुक्त आश्रित चरों को शामिल किया जाता है। (इसे द्विस्तरीय प्रक्रिया का प्रथम स्तर कहा जाता है)
(ग) इन संयुक्त रूप से आश्रित शेष चरों के प्रेक्ष्य आँकड़ों के स्थान पर इनके आकलित मानों को रखना तथा
(घ) चुने हुए आश्रित चरों के समुच्चय के लिए न्यूनतम वर्ग समाश्रयण का कलन करना। (इसे आकलन का दूसरा स्तर कहा जाता है)। इस विधि का आर्थिक प्राचलों में बहुधा प्रयोग किया जाता है।
यह विधि नीदरलैंड के प्रसिद्ध अर्थमितिज्ञ प्रो∘ हेनरी थायल द्वारा प्रतिपादित की गई है। इसकी सहायता से दो या अधिक संयुक्त आश्रित चरों वाले युगपत् समीकरणों के अति अभिज्ञात निकाय का आकलन किया जाता है। इसके अन्तर्गत निम्नलिखित क्रियाएं की जाती हैं:—
(1) प्रथम स्तर में वर्णित अंतर्जात चरों को उनके लघुकृत रूप में न्यूनतम वर्ग विधि से आकलित करते हैं जिसे दूसरे स्तर पर आश्रित चर माना जाता है। इसके बाद समीकरण के दाहिनी ओर सम्मिलित संयुक्त रूप से आश्रित चर अथवा चरों के सापेक्ष लघुकृत समीकरण से इस अथवा इन आश्रित चरों के लिए न्यूनतम वर्ग आकलन निकाला जाता है तथा
(2) दूसरे स्तर में संरचनात्मक समीकरण में दाहिनी ओर आये आश्रित चरों के आकलक का प्रयेग करके उसमें दिए बांईं ओर के प्राचलों को न्यूनतम वर्ग विधि द्वारा आकलित किया जाता है।
दोनों स्तरों पर अन्तर्जात चरों को उनके लघुकृत रूप में न्यूनतम वर्ग विधि से निम्नलिखित ढंग से आकलित किया जाता है:
Y+xβ=a
Y=xπ+r
Y=xπ
Y_1=ϒ_2 γ_1+x_1 〖βγ〗_1 (log〖Y+〗ϒ γ_2)
दूसरे स्तर पर दाईं ओर आए अन्तर्जात चरों के प्रेषित मानों को उनके लघुकृत आकलित मानों द्वारा पुनः स्थापित करते हैं।
इस विधि का मुख्य लाभ यह है कि यदि युगपत समीकरण को सीधे न्यूनतम वर्ग विधि द्वारा आकलित किया जाए तो उसके प्राचलों के आकलक असंगत होते हैं जबकि द्विस्तरीय न्यूनतम वर्ग आकलक संगत होता है इस प्रकार द्विस्तरीय न्यूनतम वर्ग विधि एक प्रकार से बहुत से अन्तर्विरोधी आकलन हेतु समीकरणों के औसतीकरण की विधि है। यह अन्तर्विरोधि समीकरणों अतिअभिज्ञात निकाय में तब उदय होते हैं जब सभी पूर्वनिर्धारित चरों को साधन चर रूप में प्रयोग कर साधनभूत चर विधि का प्रयोग किया गया हो।
Two way matc
दुतऱफा सुमेल
यह एक ऐसी सुमेलन क्रिया है जो तब तक जारी रखी जाती है जब तक कि दोहरी अभिलेख विधि के सभी अभिलेखों का सुमेलन दोनों तरफ से पूरा नहीं कर लिया जाता।
Unbiasedness
अनभिनति
यदि प्रत्येक आकार के प्रतिदर्श के लिए हमें E_a मिलता है और वह प्राचल x के तुल्य होता है तो हम यह कहते हैं कि आकलक a प्राचल x का अनभिनत आकलक है।
प्राचल x के आकलक a के प्रायिकता बंटन का कोई माध्य न होने पर इसे E_a द्वारा व्यक्त किया जाता है। जरूरी नहीं है कि प्रत्येक आकलक का ऐसा माध्य हो ही।
यदि प्रतिदर्श में E_a तो हो पर x वह के तुल्य नहीं हो तब हम यह कहते हैं कि उसमें E_(a-x) की अभिनति है।
इस संकल्पना का अर्थमिति और सांख्यिकी में किसी निष्कर्ष या अनुमिति के लिए बहुत महत्व होता है। कोई भी आर्थिक पूर्वानूमान प्रतिदर्श के इस गुणदोष पर निर्भर करता है कि उसमें किसी तरह की अभिनति है या नहीं और यदि है तो वह किस मात्रा तक है।
ऐसी अभिनति को दूर करने के लिए अनेक गणितीय या कलन की विधियाँ प्रचलित हैं।
Unchanged structure
अपरिवर्तित संरचना
ऐसे समीकरणों का समुच्चय जिसमें संरचनागत प्राचलों के मान संभाव्य मान और विक्षोभों की प्राथमिकता में किसी प्रकार का परिवर्तन नहीं होता।
इसमें प्रत्येक समीकरण में लघुकृत रूप में प्रागोक्ति की अवधि में एक यादृच्छिक घटक होता है।
ऐसी संचरना के व्यस्थित या क्रमबद्ध प्राचलों के ज्ञात होने पर भी निश्चयपूर्वक कोई भविष्यवाणी करना कठिन होता है।
Under determined system
अल्पनिर्धारित निकाय
जब किसी रेखीय मॉडल में ऐसे समीकरण या संबंध दिए हुए हों जिनके मानों को ग्रॉफ पर अंकित करने से ऐसे आरेख बनें जो परस्पर एक दूसरे को कहीं न काटते हों तब यह कहा जाता है कि इन सभी युगपत् संबंधों को एक साथ पूरा करना असंभव है अर्थात इन समीकरणों का कोई हल नहीं ढूंढा जा सकता। ऐसी प्रणाली को अल्पनिर्धारित निकाय माना जाता है।
Under population
जन अल्पता/अल्प जनसंख्या
जब किसी क्षेत्र में जनसंख्या की वृद्धि से या कुछ और लोगों के आने से रहन-सहन का स्तर अथवा प्रति व्यक्ति आय बढ़ती है तो हम कहते है कि उस क्षेत्र में जनअल्पता है।
जब इनमें किसी प्रकार की वृद्धि या ह्रास नहीं होता तब हम यह कहते हैं कि यहाँ की जनसंख्या इष्टतम है।
Unemployment rate
बेरोजगारी दर
किसी काम पर न लगे हुए बेरोजगार व्यक्तियों के कुल कार्य योग्य व्यक्तियों के प्रतिशत को बेरोजगारी दर कहा जाता है।
कुल बेरोजगारों की संख्या को श्रम शक्ति की कुल संख्या से भाग करके 100 से गुणा करके यह दर निकाली जाती है।
Unit matrix
मात्रक आव्यूह
ऐसा विकर्ण आव्यूह जिसके प्रमुख विकर्ण के अवयवों का मान 1 होता है जैसे:
[■(1&0@0&1)]
तुल∘ दे∘ matrix
Unit vector
मात्रक सदिश
द्वि-विम कार्तीय (Cartesian) प्रणाली में जब निर्देशांक x और y समष्टि में किसी बिन्दु P(x, y) का मान (0, 1) अथवा (1, 0) होता है तो उसे मात्रक सदिश कहा जाता है।
P (1, 1) भी एक अर्थ में मात्रक सदिश होता है। P (0, 0), को शून्य सदिश कहा जाता है।