इष्टतमीकरण की समस्या से संबद्ध सिद्धान्त जिसमें किसी चरमबिंदु तक पहुँचने के लिए पर्याप्त शर्तों का उल्लेख करना पड़ सकता है। इनके लिए द्धितीय आवश्यकताओं का प्रयोग किया जाता है। इनका संबंध उद्देश्य फलन की अवतलता तथा उत्तलता से होता है।
इस सिद्धान्त का अरैखिक प्रोगमन में बहुधा प्रयोग किया जाता है।
Survival ratio
उत्तरजीविता अनुपात
किसी जनसंख्या का ऐसा अनुपात जिसमें किसी प्रकार का प्रवसन न होने पर x+n आयु का सहगण n वर्ष पहले के x आयु के सहगणों के उत्तरजीवी माने जाते हैं।
उदाहरणार्थ, 1971 में 20 वर्ष की आयु के उतने ही व्यक्ति होंगे जो 1961 में 10 वर्ष की आयु के उत्तरजीवी होंगे।
उक्त दो सहगणों के अनुपात को n वर्षों में x+n आयु का उत्तरजीविता अनुपात कहते हैं।
उत्तरजीविता अनुपात का प्रयोग उन देशों में बहुतायत से होता है जिसमें जन्म मृत्यु आँकड़े या दो दोषपूर्ण हैं या उपलब्ध नहीं हैं।
जीवन सारणी की सहायता से इसकी गणना (Lx+n)/1x के सूत्र द्वारा की जा सकती है।
यहाँ n वर्षों की संख्या, Lx=x आयु के जीवित लोगों की संख्या वर्ष बाद x+n आयु के जीवित लोगों की संख्या है।
Survival ratio method
उत्तरजीविता अनुपात विधि
इस विधि द्वारा हम विभिन्न क्षेत्रों के लिए शुद्ध प्रवसन का मान ज्ञान करते हैं। इसके लिए प्रत्येक क्षेत्र के लिये दो जनगणनाओं के आयु बंटन का होना आवश्यक है।
प्रारंभिक वर्ष के किसी दिए गए क्षेत्र के विशिष्ट आयु वर्ग पर देश अथवा उस क्षेत्र के लिये बनी जीवन-सारणी के उसी आयु वर्ग के उत्तरजीविता अनुपात से गुणा करने पर दस वर्ष बाद के आयु वर्ग में जीवित व्यक्तियों की संख्या निकाली जाती है। दूसरी जनगणना के उसी आयु वर्ग में से संकलित की गई संख्या घटाने पर शुद्ध प्रवसन का परिकलन होता है।
Tabulation
सारणीयन
सारणीयन का अर्थ है सारणियों की रचना।
बिखरी हुई सामग्री को प्राथमिक सारणियों में एकत्रित करने वाली प्रविधि को सारणीयन कहते हैं।
सारणीयन का उद्देश्य मूल रूप से आँकड़ों के प्रमुख लक्षणों को रेखांकित करना है। अतः जब हम उन्हें सारणीबद्ध अर्थात् पंक्तियों व स्तंभों में प्रस्तुत करते हैं, तो यह उद्देश्य पूरा हो जाता है।
T distribution
टी (t) बंटन
इस बंटन का प्रयोग एक सामान्य समष्टि के नमूने में उसके औसत (मूल माध्य से) तथा प्रतिदर्श के प्रसरण के अनुपात को मापने के लिये किया जाता है। जिसका फार्मूला रूप यह है:— t= (βi-βi)/(Σ〖ei〗^2 \n-k( a̅i̅i̅) )
यह अपने मूल प्राचल के मापक्रम से पूर्णतः स्वतंत्र होता है।
इसकी सहायता से हम विश्वसनीयता अंतराल की सीमा निर्धारित कर सकते हैं और यह देख सकते हैं कि कोई आकलन तथा परिकल्पना ठीक है अथवा नहीं।
इस प्रकार के बंटन को t सारणियों के रूप में दिया जाता है, जिसमें स्वीकृति के क्षेत्र के बिन्दु भी दिए रहते हैं। इस प्रकार का बंटन उपगामी सामान्यता वाला होता है।
इसका सबसे पहले प्रयोग स्टूडेंट, (Student), जिसका असली नाम डब्ल्यू∘ एस∘ गोसेट था, द्वारा 1908 में किया गया था। बाद में फिशर ने इसका और आगे विकास किया। t बंटन के अनुसार यदि x प्रसामान्यतः बंटित ऐसा विचर हो जिसका माध्य u और प्रसरण σ^2 हो, u का बंटन k स्वातंत्रय-कोटि वाला कोई वर्ग बंटन हो, और यदि x व u स्वतंत्र रूप से बंटित हो तो t=(〖( x-u〗^σ ))/√μK का बंटन निम्नलिखित होगा:— (FORMULA)
Technological restraints
प्रौद्योगिकी अवरोध
उत्पादन बढ़ाने के लिए वर्तमान प्रौद्योगिकी जैसे, नई मशीनें, वैज्ञानिक आविष्कार तथा नवीन उत्पादन विधियों और इंजीनियरी संबंधी ज्ञान आदि से संबद्ध उत्पादन की कुल क्षमता पर जो अवरोध लग सकते हैं और जिनके फलस्वरूप उत्पादन को सीमित स्तर तक ही बढ़ाया जा सकता है इन्हें प्रौद्गियोकी अवरोध कहा जाता है।
इन अवरोधों को अर्थमिति में फलनों या समीकरणों के माध्यम से व्यक्त किया जाता है।
Testing of hypothesis
परिकल्पना परीक्षण
सांख्यिकी अनुमिति की एक विधि।
इसके द्वारा हम किसी परिकल्पना को स्वीकार या अस्वीकार करने के लिए अपने अभिकथन के प्राचलों का परीक्षण करते हैं। यथा जब हम प्रारंभ में कथन के रूप में यह मानकर चलते हैं कि किसी जनसंख्या का माध्य u है और किसी चुने हुए मान अर्थात् q के बराबर है तो हम इन दत्त अंकों और आनुभविक सूचना को मिलाकर इस निर्णय पर पहुँचना चाहते हैं कि क्या हम इन तथ्यों के आधार पर अपनी परिकल्पना को स्वीकार कर सकते हैं या नहीं।
अनुमिति की इस विधि का नाम परिकल्पना परीक्षण है। इस परीक्षण के तीन प्रकार हैं:—
(1) इसमें परख किए जाने वाले मान के लिए सममित क्षेत्र को दिखाया जाता है,
(2) इसमें परिमिति सीमाओं के आधार पर असममित प्रदेश को दिखाया जाता है तथा
(3) इसमें असममित बिन्दुओं का मान दिखाया जाता है तथा प्राक्कल्पना को अस्वीकार करने के लिए हास फलनों का आश्रय लिया जाता है।
Test statistic
परीक्षण प्रतिदर्शज
ऐसा प्रतिदर्शज जो प्रसरण विश्लेषण मॉडल में प्रारंभिक परिकल्पना तथा सकल संबंधों की परख के लिये अभिकलित किया जाता है या यह दर्शाता है कि क्या एक चर का दूसरे चर पर कोई प्रभाव पड़ता है अथवा नहीं तथा किसी संबंध में किस दर्जे तक स्वतंत्रता है।
इसके अभिकलन की कई विधियाँ होती हैं और यह चर की बंटन प्रणाली पर निर्भर करता है।
सामान्य रैखिक मॉडल के लिए उपर्युक्त परीक्षण प्रतिदर्शज के दो नमूने नीचे दिचे जाते हैं:—
(FORMULA)
Thompson's index
थॉमसन सूचकांक
थॉमसन सूचकांक का प्रयोग जन्म और मृत्यु दरों को निकालने के लिए किया जाता है। इसका संबंध स्थिर जनसंख्या सिद्धान्त से है। कभी-कभी इसे प्रतिस्थापन सूचकांक की संज्ञा भी दी जाती है।
इस सूचकांक को तैयार करने के लियये 15-44 वर्ष की आयु की स्त्रियों और 5 वर्ष से कम आयु के बच्चों का अनुपात मालूम होना चाहिए। इस अनुपात की तुलना उसी जनसंख्या की जीवन सारणियों से प्राप्त अनुपात से करके यह सूचकांक निकाला जाता है। इसका सूत्र निम्नलिखित है:—
Ro=((Po-4)/(Pf15-44))/((Lo-4)/(Lf15-44))
Three stage least square estimation
त्रिस्तरीय न्यूनतम वर्ग आकलन
इस विधि में सर्वप्रथम मॉडल के प्रत्येक संरचानात्मक समीकरण को अलग से द्विस्तरीय न्यूनतम वर्ग विधि से आकलित किया जाता है। प्रत्येक संरचनात्मक समीकरण को अभिनिर्धारण अवरोधों को संतुष्ट करना होता है।
दूसरे स्तर पर आकलित गुणांकों का योग प्रत्येक संभाव्य संरचनात्मक समीकरणों में अवशिष्ट आकलन करने में किया जाता है। यह आव्यूह संरचनात्मक विक्षोभ प्रकट करता है।
तीसरे स्तर पर सभी समीकरणों के गुणांकों को एक साथ सामान्य न्यूनतम वर्ग विधि से आकलित करते हैं। इस हेतु दूसरे स्तर पर आकलित प्रसरण सहप्रसरण आव्यूह तथा गुणांकों पर सभी अभिनिर्धार्य अवरोधों का प्रयोग किया जाता है।